Thursday, May 31, 2007

पहली बार

सही बता रहा हूँ, इसमे मेरी कोई गलती नही है। ये सब मुझसे जबरदस्ती कराया गया है। मैं तो मना कर रहा था, लेकिन कुछ लोगो को तो कुछ समझ मे ही नही आता है, बस अपने मन की करते है। अब भाई आप ही बताइये, ये कहा का न्याय है, सिधाई का तो बस जमाना ही नही है। ....एक मिनट.... लगता है आप को कुछ समझ नही आ रहा है। ओ ...ओ ..... शुरू से बताता हूँ .......

मेरा एक दम् इरादा नही था कि एक और blogg खुले, और लोग मजबूर हो उसे पढने के लिए। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। सब कुछ तो इन्सान के हाथ मे होता नही है। मेरे एक मित्र है। काफीअच्छा लिख लेते है। उनके हाथो मे जादू है। उंगलिया जब कंप्यूटर के की बोर्ड पढ़ती है तो आहा..हां ... क्या वाक्य निकलते है। ऐसा लगता है मनो स्वयं साक्षात् सरस्वती जी blogg लिख रही हो ....oops लगता है, कुछ ज्यादा हो गया... कहने का मतलब ये है कि भाई साहब काफी अच्छा लिख लेते है. खेर, तो जैसे सावन के अंधे को सब हरा ही दिखता है, वैसे ही उन्हें लगा कि मैं भी अच्छा लिख लूँगा। यकीन मानिये जब से उनके दिमाग मैं ये फितूर आया, तब से पीछे पडे है, कि कम से कम एक blogg ही खोल लो.....और कल तो हद्द ही कर दी। कल मेरे रूम पर आये और बोले," जब तक तुम blogg खोलते नही हो, मैं हिलूँगा नही।" वैसे तो हमारे होस्टल मे इन्टरनेट कि रफ्तार कछुये की रफ्तार से थोड़ी ही ज्यादा होगी, इसलिए मैं डरा नही और मैंने अपना पिटारा, मतलब कंप्यूटर खोल लिया। मुझे लगा कि इन्टरनेट स्पीड कि लोरी सुनके जल्दी ही इनको नींद आ जायेगी और ये अपने होस्टल को रवाना हो लेंगे। लेकिन कल हमारी बदनसीबी देखिए, इन्टरनेट कि रफ़्तार भी माशा अल्लाह थी। तुरंत खुल गया. किसी ने सही कहा है, मुसीबत अकेले नही आती। मेरे मित्र महोदय भी अपने साथ तेज इन्टरनेट स्पीड लाए थे।
अब जब यहाँ आ ही गए है तो उम्मीद करता हूँ कि आप लोगो का अच्छे से मनोरंजन करुंगा। अभी के लिए इतना ही....
नमस्कार